topi class 8 | टोपी

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पाठ -18

 टोपी 

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 ध्वनि प्रस्तुति 

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टोपी पाठ परिचय


इस कहानी के लेखक सृंजय जी हैं। यह कहानी एक लोक कथा है। यहाँ पर टोपी को शक्ति और सम्मान का प्रतीक बताया गया है। इस कहानी के जरिए लेखक दो बातें कहना चाहते हैं।

पहला यह कि कैसे शक्तिशाली लोग अपनी शक्ति का अनुचित प्रयोग कर अपना काम करवाते हैं. और मेहनत करने वालों को पूरा मेहनताना भी नहीं देते हैं। लोग भी उनका काम पूरे मन से नहीं करते हैं। अगर उनके काम के बदले उन्हें पूरा मेहनताना दिया जाए तो , वो अपना काम पूरी ईमानदारी और सच्चाई के साथ करेंगे।

और दूसरी बात ये कि , अगर किसी काम को करने के लिए मन में दृढ़ इच्छा शक्ति हो तो , कोई भी लक्ष्य असंभव नहीं होता है। और कोई भी मुश्किल आपका रास्ता नहीं रोक सकती है।

लेखक ने इसमें मुहावरों का बहुत शानदार प्रयोग किया हैं। हर बात को मुहावरों के द्वारा कहने की कोशिश की है।

एक तरफ़ सत्ता की निरंकुशता है तो दूसरी तरफ़ संकल्प की महत्ता के साथ सत्ता की धज्जियाँ उढ़ाने का चटखारा .



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 टोपी पाठ का सार 




इस खूबसूरत कहानी की शुरुआत होती है एक गौरैया (Sparrow) के जोड़े की बातचीत से। दोनों (नर (Male)  व मादा (Female) गौरैया) एक दूसरे के साथी थे और दोनों में बहुत प्रेम भी था। वो दोनों जहाँ जाते , साथ जाते , साथ खाते-पीते , हँसते , रोते और खूब बातें करते। दोनों अपने सारे काम साथ-साथ करते थे और बहुत खुश रहते थे। 
 
एक बार मादा गौरैया ने किसी मनुष्य को कपड़े पहने देखा। तो उसने नर गौरैया ने कहा कि मनुष्य वस्त्रों में कितना सुंदर लगता हैं। तब नर गौरैया ने मादा गौरैया को समझाते हुए कहा कि वस्त्र मनुष्य को सुंदर नहीं बनाते बल्कि वो तो उसका वास्तविक सौंदर्य ढक देते है।और हमें वस्त्रों की कोई आवश्यकता नहीं। हम तो ऐसे ही बहुत सुंदर दिखते हैं।

इस पर मादा गौरैया कहती है कि मनुष्य केवल अपने आप को सुन्दर दिखाने के लिए ही कपड़े नहीं पहनता बल्कि गर्मी , सर्दी , बरसात जैसे मौसमों की मार से खुद को बचाने के लिए भी मनुष्य कपड़े पहनता है।

तब नर गौरैया , मादा गौरैया को समझाते हुए कहता है कि असली टोपी तो आदमियों का राजा पहनता है। वैसे इस टेापी की इज्जत को बचाये रखने में कितने ही लोगों का दिवाला निकल जाता है। और मनुष्य अपनी इज्जत को बचाने या अपने स्वार्थ की पूर्ति के लिए ना जाने कितने ही लोगों को टोपी पहनाता (बेवकूफ बनाता) है।

मगर मादा गौरैया को टोपी पहनने का शौक चढ़ गया। और उसने अपने लिए एक सुंदर सी टोपी बनाने की ठान ली और इस दिशा में उसने अपना प्रयास भी शुरू कर दिया।

अगले दिन सुबह-सुबह रोज की तरह नर गौरैया और मादा गौरैया दाना चुगने एक कूड़े के ढेर के पास गए । दाना चुगते-चुगते अचानक मादा गौरैया को रुई का एक टुकड़ा मिल गया। रुई का टुकड़ा देखकर मादा गौरैया ख़ुशी से कूड़े के ढेर पर लोटने लगी।  

अब यहां से शुरू होता है छोटी सी गौरैया का उस रुई से खूबसूरत सी टोपी बनाने तक का सफर। 

सबसे पहले गौरैया उस रुई को धुनिया के पास ले जाकर धुनवाने की कोशिश करती है। लेकिन धुनिया उसका काम मुफ्त में करने से मना कर देता है। लेकिन जब वह उसको , उसकी मेहनत का पूरा हिसाब यानी उस रुई में से आधी रुई देने की बात करती है तो , धुनिया खुशी खुशी उसकी रूई धुन देता है।

फिर गौरैया उस धुनी हुई रुई का सूत कतवाने के लिए कोरी के पास ले जाती है। और उसे भी आधा सूत मेहनताने के रूप में दे देती है। उसके बाद गौरैया धागे से कपड़ा बनवाने के लिए बुनकर के पास पहुंचती है। और बुनकर को भी कपड़े का आधा हिस्सा मेहनताने के रूप में दे कर धागे से कपड़ा बनवा लेती है। 

उसे बाद गौरैया उस कपड़े से टोपी बनाने के लिए दर्जी के पास पहुंचती है। उसे भी उसकी मजदूरी के रूप में आधा कपड़ा दे देती हैं। दर्जी ने खुश हो कर न सिर्फ उसकी टोपी बनाई  , साथ में उसमें पाँच ऊन के फूल भी लगा दिए। गौरैया की टोपी अब बहुत सुन्दर लग रही थी। अब तो नर गौरैया को भी कहना ही पड़ा कि तुम टोपी पहन कर बिल्कुल रानी लग रही हो।

उस टोपी को पहनने के बाद गौरैया के मन में राजा से मिलने की इच्छा हुई। और वह टोपी पहन कर राजा के महल में पहुँची। उस समय राजा छत पर मालिश करवा रहा था। गौरैया ने राजा का मजाक उड़ाना शुरू कर दिया।जिससे राजा को क्रोध आ गया। और उसने अपने सैनिकों को गौरैया को मारने का आदेश दे दिया। सैनिकों ने गौरैया को मारा तो नहीं , मगर उसकी टोपी छीन ली।

राजा ने जब उसकी सुन्दर टोपी को देखा तो वह हैरान रह गया। उसने गौरैया से पूछा कि इतनी सुन्दर टोपी किसने बनाई। गौरैया ने बताया कि टोपी दर्जी ने बनाई हैं। तब राजा ने दर्ज़ी को बुलवाया और उससे टोपी के सुंदर होने का कारण पूछा । दर्जी ने राजा को बताया कि टोपी सुन्दर इसलिए बनी क्योंकि कपड़ा बहुत अच्छा था।

फिर राजा ने पूछा कि कपड़ा किसने बनाया। गौरैया ने बताया की बुनकर ने। इसके बाद बुनकर  , कोरी व धुनिया को राजा ने अपने दरवार में बुलाया।

सभी ने राजा को बताया कि गौरैया ने सभी को उनकी मेहनत की पूरी मजदूरी दी थी। इसलिए उन्होंने भी गौरैया का काम ईमानदारी से किया। 

उधर अपनी टोपी को छीनती देख , गौरैया जोर जोर से चिल्लाने लगी कि “उसने हर व्यक्ति को उसकी मेहनत की पूरी कीमत चुकायी है। राजा कंगाल है। वह प्रजा को बहुत सताता है। उनसे मनमाना कर वसूलता है। अब उसने मेरी टोपी भी छीन ली है। खुद पूरा मेहनताना देकर अच्छी टोपी नहीं बनवा सकता है।

अब राजा को लगने लगता हैं कि गौरैया कहीं उसकी सारी पोल ना खोल दे। यह सोचकर राजा ने गौरैया की टोपी वापस कर दी। गौरैया ने टोपी पहनी और उड़ते हुए जोर-जोर से “राजा डरपोक हैं। इसीलिए उसने टोपी लौटा दी” कहती हुई वहां से चली गई।


Q&A


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प्रश्न 1: गवरइया और गवरा के बीच किस बात पर बहस हुई और गवरइया को अपनी इच्छा पूरी करने का अवसर कैसे मिला?
उत्तर :आदमी के कपड़े पहनने की बात को लेकर ‘गवरइया’ और ‘गवरा’ में बहस हुई। गवरहया को आदमी का रंग बिरंगे कपड़े पहनना अच्छा लगता था। जबकि गवरा का कहना था कि कपड़े पहनने से आदमी की असली खुबसूरती कम हो जाती है, वह बदसूरत लगने लगता है।

एक दिन घूरे पर चुगते−चुगते गवरइया को रूई का एक फाहा मिला। उसने इसे धुनवाया, कपड़ा बुनवाया फिर टोपी सिलवाई इसी से उसे टोपी पहनने की इच्छा पूरी करने का अवसर मिला।

प्रश्न  2: गवरइया और गवरे की बहस के तर्कों को एकत्र करें और उन्हें संवाद के रूप में लिखें।
उत्तर :
गवरइया- “आदमी को देखते हो? कैसे रंग − बिरंगे कपड़े पहनते हैं। कितना फबता है उन पर कपड़ा।”
गवरा- “खाक फबता है। कपड़ा पहन लेने के बाद तो आदमी और बदसूरत लगने लगता है।”

गवरइया - “लगता है आज लटजीरा चुग गए हो?”
गवरइया - “कपड़े केवल अच्छा लगने के लिए नहीं मौसम की मार से बचने के लिए भी पहनता है आदमी।”
गवरा - “तू समझती नहीं। कपड़े पहन − पहन कर जाड़ा−गरमी−बरसात सहने की उनकी सकत भी जाती रही है और कपड़ा पहनते ही पहनने वाले की औकात पता चल जाता है।”

गवरइया - “फिर भी आदमी कपड़ा पहनने से बाज़ नहीं आता। नित नए – नए लिबास सिलवाता रहता है।”
गवरा - “यह निरा पोंगापन है। अपन तो नंगे ही भले।”

गवरइया - “उनके सिर पर टोपी कितनी अच्छी लगती है। मेरा भी मन टोपी पहनने का करता है।”
गवरा - “टोपी तू पाएगी कहाँ से। टोपी तो आदमियों का राजा पहनता है। मेरी मान तो तू इस चक्कर में पड़ ही मत”।


प्रश्न  3:टोपी बनवाने के लिए गवरइया किस किस के पास गई? टोपी बनने तक के एक−एक कार्य को लिखें।
उत्तर : टोपी बनवाने के लिए गवरइया रूई लेकर सबसे पहले धुनिया के पास गई। उसके बाद उत्साहित गवराइया एक कोरी के यहाँ घुनी रूई से सूत कातवाने गई। फिर वो सूत से कपड़ा बुनवाने के लिए एक बुनकर के पास गई । अन्तत: गवरइया कपड़ा लेकर टोपी सिलवाने के लिए एक दर्जी के पास गई। दर्जी ने उसके कपड़े से शर्त के अनुसार दो सुन्दर टोपियाँ सिल दी। एक टोपी उसने अपने पास रख ली तथा दूसरी टोपी गवरइया को दे दी। टोपी बनने के बाद दर्जी ने अपनी तरफ से उसमें पाँच फुँदने भी लगा दिए।

प्रश्न 4: गवरइया की टोपी पर दर्जी ने पाँच फुँदने क्यों जड़ दिए?
उत्तर : गवरइया की टोपी पर दर्जी ने खुश होकर अपनी तरफ से पाँच फुँदने जड़ दिए। क्योंकि इस मुल्क में आज तक दर्जी को मेहनत करने के लिए किसी ने इतनी मज़दुरी नहीं दी थी। गवरइया ने दर्जी को टोपी बनाने के लिए अपने कपड़े में से आधा कपड़ा दे दिया था।

प्रश्न 5: गाँव की बोली में कई शब्दों का उच्चारण अलग होता है। उनकी वर्तनी भी बदल जाती है। जैसे गवरइया 'गौरैया' का ग्रामीण उच्चारण है। उच्चारण के अनुसार इस शब्द की वर्तनी लिखी गई है। फुँदना, फुलगेंदा का बदला हुआ रूप है। कहानी में अनेक शब्द हैं जो ग्रामीण उच्चारण में लिखे गए हैं, 
जैसे − 

मुलुक-मुल्क, 
खमा-क्षमा, 
मजूरी-मजदूरी, 
मल्लार-मल्हार इत्यादि। 

आप क्षेत्रीय या गाँव की बोली में उपयोग होनेवाले कुछ ऐसे शब्दों को खोजिए और उनका मूल रूप लिखिए, 
जैसे − 
टेम-टाइम, 
टेसन/टिसन − स्टेशन।

उत्तर :

  • सकूल – स्कूल
  • कम्पूटर – कम्प्यूटर
  • टी.बी. – टी.वी.



प्रश्न 6: किसी कारीगर से बातचीत कीजिए और परिश्रम का उचित मूल्य नहीं मिलने पर उसकी प्रतिक्रिया क्या होगी? ज्ञात कीजिए और लिखिए।

उत्तर : यदि किसी कारीगर को उसकी मेहनत का उचित मुल्य नहीं मिलेगा तो वह या तो कार्य पूरा नहीं करेगा और यदि वह कार्य पूरा करने को तैयार भी हो जाएगा तो कार्य को फुर्ती से या खूबसूरती से नहीं कर पाएगा।

प्रश्न 7: गवरइया की इच्छा पूर्ति का क्रम घूरे पर रुई के मिल जाने से प्रारंभ होता है। उसके बाद वह क्रमश: एक-एक कर कई कारीगरों के पास जाती है और उसकी टोपी तैयार होती है। आप भी अपनी कोई इच्छा चुन लीजिए। उसकी पूर्ति के लिए योजना और कार्य−विवरण तैयार कीजिए।
उत्तर : अपने अनुभव पर इसका उत्तर दें।

प्रश्न 8: गवरइया के स्वभाव से यह प्रमाणित होता है कि कार्य की सफलता के लिए उत्साह आवश्यक है। सफलता के लिए उत्साह की आवश्यकता क्यों पड़ती है, तर्क सहित लिखिए।

उत्तर : किसी भी कार्य को पूरा करने के लिए मन में उत्साह होना आवश्यक है। उत्साह से ही हमारे मन में किसी भी कार्य के प्रति जागरूकता उत्पन्न होती है। यदि हम किसी भी कार्य को बेमन से करेंगे तो निश्चय ही हमें उस कार्य में सफलता नहीं मिलेगी। कोई न कोई कमी ज़रूर रह जाएगी।

प्रश्न 9: टोपी पहनकर गवरइया राजा को दिखाने क्यों पहुँची जबकि उसकी बहस गवरा से हुई और वह गवरा के मुँह से अपनी बड़ाई सुन चुकी थी। लेकिन राजा से उसकी कोई बहस हुई ही नहीं थी। फिर भी वह राजा को चुनौती देने को पहुँची। कारण का अनुमान लगाइए।

उत्तर :टोपी पहनकर गवरइया के राजा को दिखाने का मकसद गवरा को नीचा दिखाने से था। क्योंकि बहस के दौरान गवरा ने गवरइया से कहा था कि टोपी तो आदमियों के राजा पहनते हैं। गवरा के इसी बात को गलत साबित करने के लिए गवरइया टोपी पहनकर राजा के पास गई।

प्रश्न 10: यदि राजा के राज्य के सभी कारीगर अपने-अपने श्रम का उचित मूल्य प्राप्त कर रहे होते तब गवरइया के साथ उन कारीगरों का व्यवहार कैसा होता ?

उत्तर : यदि राजा के राज्य के सभी कारीगरों को अपने श्रम का उचित मूल्य मिलता तो गवरइया का कार्य पूरा करने से पहले कारीगर राजा का कार्य पूरा करते तथा राजा की टोपी भी गवरइया के टोपी के समान ही सुन्दर होती।

प्रश्न 11: चारों कारीगर राजा के लिए काम कर रहे थे। एक रजाई बना रहा था। दूसरा अचकन के लिए सूत कात रहा था। तीसरा धागा बून रहा था। चौथा राजा की सातवीं रानी की दसवीं संतान के लिए झब्बे सिल रहा था। उन चारों ने राजा का काम रोककर गवरइया का काम क्यों किया?

उत्तर : चारों कारीगर राजा का काम कर रहे थे, परन्तु राजा द्वारा उन्हें उनके श्रम का उचित मूल्य नहीं मिलता था। गवरइया ने उन्हें उनके श्रम का उचित मुल्य दिया इसीलिए सभी कारीगरों ने राजा का काम रोककर पहले गवरइया का काम किया।

प्रश्न 12: मुहावरों के प्रयोग से भाषा आकर्षक बनती है। मुहावरे वाक्य के अंग होकर प्रयुक्त होते हैं। इनका अक्षरश: अर्थ नहीं बल्कि लाक्षणिक अर्थ लिया जाता है। पाठ में अनेक मुहावरे आए हैं। 
टोपी को लेकर तीन मुहावरे हैं; जैसे − कितनों को टोपी पहनानी पड़ती है। 

शेष मुहावरों को खोजिए और उनका अर्थ ज्ञात करने का प्रयास कीजिए।

उत्तर :
टोपी उछालना-
(इज़्ज़त उछालना) 
एक गलत काम करने से आदमी की टोपी उछलते देर नहीं लगती।

टोपी से ढँक लेना-
(इज्ज़त ढँक लेना) 
अपने घर की बात को टोपी से ढँक लेना ही अच्छा है।



जय हिन्द : जय हिंदी 
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